Komal Rawat
1988 Noida
Love to writeवो दिन भी क्या दिन थे, जब मां लोरियां गाती थी।
अपने आंचल की छांव से जब चुपके से उठाती थी।
ठाठ हमारे कोन सा कम थे हम दोबारा से सो जाते थे।
देख हमारे नखरे फिर वो जोरो से चिल्लाती थी।
नहला धुला, कंघी तेल लगा जब स्कूल तक पहुंचाती थी।
तब जाकर ही शायद वो एक निवाला खाती थी।
दिन भर करती काम मगर माथे पे सिकन न आती थी।
अक्सर अपनी फटी एड़ियां सबसे वो छिपाती थी।
है कितने एहसान तेरे, इस जन्म चुका ना पाऊंगी।
तेरे कदमों की मिट्टी अपने सर माथे लगाऊंगी।
"कोमल रावत"
Time : 2021-05-20 19:05:43
वो दिन भी क्या दिन थे, जब मां लोरियां गाती थी।
अपने आंचल की छांव से जब चुपके से उठाती थी।
ठाठ हमारे कोन सा कम थे हम दोबारा से सो जाते थे।
देख हमारे नखरे फिर वो जोरो से चिल्लाती थी।
नहला धुला, कंघी तेल लगा जब स्कूल तक पहुंचाती थी।
तब जाकर ही शायद वो एक निवाला खाती थी।
दिन भर करती काम मगर माथे पे सिकन न आती थी।
अक्सर अपनी फटी एड़ियां सबसे वो छिपाती थी।
है कितने एहसान तेरे, इस जन्म चुका ना पाऊंगी।
तेरे कदमों की मिट्टी अपने सर माथे लगाऊंगी।
"कोमल रावत"
Time : 2021-05-20 19:05:43
वो दिन भी क्या दिन थे, जब मां लोरियां गाती थी।
अपने आंचल की छांव से जब चुपके से उठाती थी।
ठाठ हमारे कोन सा कम थे हम दोबारा से सो जाते थे।
देख हमारे नखरे फिर वो जोरो से चिल्लाती थी।
नहला धुला, कंघी तेल लगा जब स्कूल तक पहुंचाती थी।
तब जाकर ही शायद वो एक निवाला खाती थी।
दिन भर करती काम मगर माथे पे सिकन न आती थी।
अक्सर अपनी फटी एड़ियां सबसे वो छिपाती थी।
है कितने एहसान तेरे, इस जन्म चुका ना पाऊंगी।
तेरे कदमों की मिट्टी अपने सर माथे लगाऊंगी।
"कोमल रावत"
Time : 2021-05-20 19:05:43